शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

जिंदगी जैसे नार छिनार


जिंदगी जैसे नार छिनार ,
मिथ्या साँसों का व्यव्हार !
सकल व्यापार है बेमानी ,
मनुज मन ढोता है लाचार.....!!

सोमवार, 23 जून 2014

अशोक सूर्यवेदी

शब्द शब्द मेरा है जी अंगारों के अंश में ,
मैं पला बढ़ा हुआ हूँ खंगारों के वंश में !!

गुरुवार, 19 जून 2014

उम्मीदों का गाँव हैं पापा


बरगद वाली छाँव हैं पापा ,
अंगद वाला पाँव हैं पापा !
जहाँ हसरतें पूरी होतीं ,
उम्मीदों का गाँव हैं पापा ....!

शनिवार, 1 सितंबर 2012

गौरव और गद्दार



"गौरव और गद्दार " 

नहीं झुके कभी रहे जूझते , 
जुझौतिखंड के वीर सपूत ! 
राष्ट्र धरम पर बलि चढ़े , 
जय भारत माँ के धीर सपूत !! 
यवनों से अंग्रेजों तक जो , 
राष्ट्र धर्म हित जूझ गए ! 
धिक्कार तुम्हारे जीवन पर , 
तुम कैसे उनको भूल गए !! 
सारा भारत ग्रसित हुआ जब , 
मुगलाधीन अंधियारे से ! 
जुझौतिखंड तब चमक रहा था , 
केशरिया उजियारे से !! 
मेरे सिर का केशरिया , 
दुश्मन की आँख का तिनका था ! 
मगर खंगारों के सम्मुख , 
न उनमे साहस रण का था !! 
धरती के सीने पर जिनका , 
तलवारों ने इतिहास लिखा ! 
विजय पराजय न लख जूझो , 
चले गए बस यही सिखा !! 
वीरों के इतिहास में लेकिन , 
गद्दारों के जब चरण पड़े ! 
महाकाल की गाज गिरी , 
कई गद्दारी की भेंट चढ़े !! 
वीरों का इतिहास सदा ही, 
छल कपटों से मुक्त रहा ! 
पर गद्दारों का जीवन तो बस, 
छल छंदों से युक्त रहा !! 
आदिकाल से वर्तमान तक , 
जब जब काले बीज पड़े ! 
भारत भू के अमन चैन पर, 
विपदाओं के झाड खड़े !! 
त्रिलोक विजयी रावण हारा, 
कुलघाती हुआ विभीषण ! 
काल यवन बन संकट आया , 
ज़रासंध ने दिया निमंत्रण !! 
जूनागढ़ के वीर प्रतापी , 
रा"खंगार जी राजा थे ! 
इतिहास प्रसिद्द है महरानी , 
सती हुई थी रानक दे !! 
बहिन पुत्र दो देसल बेसल , 
गद्दारी की गाज बने ! 
वीर धरा पर भार बने , 
धिक्कार बने मक्कार बने !! 
सिद्धराज ने चोरी चुपके , 
रा"खंगार का नाश किया ! 
रानक दे फिर सती हुई औ", 
वीर प्रष्ट का अंत हुआ !! 

************   
"अशोक सूर्यवेदी"

मंगलाचरण

" मंगलाचरण "
कर आचमन माँ वेत्रवती से , 
गणपति को शीश झुकता हूँ !! 
फिर माँ सरस्वती मैं तेरे दर पर, 
याचक बनकर आता हूँ !! 
माँ से शब्द सम्पदा ले अब , 
इतिहासों के साक्ष्य जुटाता हूँ !! 
फिर गिरिवासन तेरे दर पर, 
श्रद्धा से शीश झुकता हूँ !! 
कुलदेवी मात गजानन ", 
साक्षी मैं यह तुमसे रखता आस !! 
साथ कलम का देकर माँ अब , 
लिखवा दो तुम इतिहास !! 
वीर की गाथा है यह जिसने , 
जूझ के जीना मरना सीखा !! 
तो सच को सच गाने की खातिर , 
मैंने भी कब डरना सीखा !! 
जो म्रत्यु भय से मुक्त कराती , 
मातु कालिके नमस्कार ! ! 
अब निर्भय होकर गाता हूँ , 
मैं गौरव गाथा जय खंगार !!

"अशोक सूर्यवेदी "

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

गढ़ कुंडार

"गढ़ कुंडार" 

किसका था ये राज्य यहाँ , 
ये किसका वीरान महल खड़ा ? 
किसने दे दी जान सत्य को , 
किसका साक्षी खंभ पड़ा ? 
कौन हुआ है वाली धरम पर , 
किसने ये संग्राम किया ? 
किसने दे दी घात महल को, 
किसने जीवन दान किया ? 
चीख पड़े कुछ पन्ने मुझ पर , 
इतिहासी करुण कहानी के ! 
कल तक थे तुम कवि कहाँ , 
दिन बीते तीव्र जवानी के ? 
खंग अंग जो धारण करते , 
राजधानी भूप खंगारों की ! 
क्षात्र धर्म और देशप्रेम ही , 
ध्येय रही अंगारों की ! 
सन्मुख न कोई रहा खड़ा , 
एक योद्धा ऐसा खेत खंगार ! 
मलिखा जिसने हाथो मारा, 
आल्हा भगा छोड़ संहार !! 
सिंहों से बिन शष्त्र वो लड़ता , 
बज्र देह वाला था खेत ! 
खड्ग धार जब रन में डटता, 
वैरी नवते सैन्य समेत !! 
हार गयी जिसके बल से , 
चंदेलों की कीर्ति पताका ! 
मजबूर हुआ परमाल जिसे , 
करने को नीचा निज माथा !! 
दिल्ली पति चौहान जिसे , 
वीरो में वीर समझते थे ! 
सामंत था अति क्रोध बंत , 
बजरंग जिसे सब कहते थे !! 
था अधिपति वो भूप यहाँ का ,
उसकी कृति ये गढ़ कुंडार ! 
राजपूतो में प्रथम सिंह ,
जय महाराजा खेत खंगार !! 

" अशोक सूर्यवेदी "

सोमवार, 21 नवंबर 2011

चंदेरी का जौहर और बाबर का झूंठ

जौहर का शिला लेख 



भारत का इतिहास स्याही से नहीं बल्कि वीरों के शोणित और तलवारों से लिखा गया है . इतिहास इस बात का साक्षी है की हमने कभी भी आक्रान्ताओं के सामने समर्पण नहीं किया . स्वर्ण सुंदरी के लोभी विदेशी जब जब भारत की और बढे हमारे वीरों ने उनका स्वागत लपलपाती तलवारों से किया . दुर्भाग्यवश  यदि आक्रान्ताओं ने युद्ध  क्षेत्र में तलवारों को जीत लिया और भारती के वीर हर हर महादेव उद्घोष करते हुए शहीद हो गए तो राजमहिषी और वीरांगनाओं ने भी कभी दुश्मन के साथ समझौता नहीं क्या अपितु जय जय हर के नारों के साथ जौहर की आग का वरन  कर अपने कुल और देश के स्वाभिमान की रक्षा की !
       
             मध्य युगीन इतिहास में चंदेरी का जौहर अब तक के इतिहास का सबसे विशाल जौहर माना  जाता है !बाबर ने खानवा के युद्ध  में राणा  सांगा को परास्त कर हिन्दुओं के शक्ति केंद्र  चंदेरी की और अपने लस्कर समेत कूच किया तो खानवा में बाबर की ताकत का सामना कर चुके मेदनी राय खंगार और उनके वीरों ने झुकना स्वीकार नहीं किया बाबर के लाख प्रलोभनों को नकार कर अपने अंजाम से वाकिफ मेदनी राय खंगार ने बाबर की रन हुंकार को सहर्ष स्वीकार किया !

चंदेरी दुर्ग 
               ३२ मील की लम्बाई चौडाई में आबाद चंदेरी नगर बेतवा और उर नदी के घेर में तीन और से घिरा हुआ था और चौथी और विन्ध्य की उपत्यका प्रहरी रूप में प्रस्तुत थी ! बाबर ने जनवरी १५२८ में चंदेरी पर धावा बोला तो स्वाभिमान से पूरित खंगार सेना ने भरकश प्रतिरोध करते हुए वीरगति पायी ! बाबर ने अपनी आत्मकथा में इस युद्ध का वर्णन  करते हुए लिखा है कि "उसने चंदेरी को मात्र तीन घडी में ही जीत लिया था " अपने आप में श्लाघापूर्ण  है और विजेता के बडबोलेपन का उदाहरण मात्र है ! बाबर के अपने इस कथन की  धज्जियां उसके द्वारा शेख गुरेन और अरायाश खां पठान  को बारम्बार संधि के लिए चंदेरी भेजने कि घटना से ही उड़ जाती हैं ! हकीकत तो यह है कि चंदेरी कि जटिल भौगोलिक रचना, मेदिनी राय खंगार का सैन्य बल, और खानवा के युद्ध में उसका शौर्य देखकर बाबर हिम्मत जबाब दे रही थी ! लेकिन भाग्य के धनी बाबर की किस्मत से गद्दार हिम्मत सिंह ने घर कि कुरैया बनकर वीर बसुन्धरा कि आँख फोड़ी , गद्दारों का बल पाकर  ही बाबर ने चंदेरी को कूच किया ! वीरभूमि का यह दुर्भाग्य रहा की मेदिनी राय खंगार को पुत्रवत स्नेह देने वाले महाराणा  सांगा को चंदेरी युद्ध में पहुचने से पहले ही षड़यंत्र का शिकार बना लिया गया और मेदिनी राय खंगार युद्ध क्षेत्र में अकेला पड़ गया ! मेदिनी राय खंगार के नेतृत्व में स्वतंत्रता के शोलो को दिल में सहेजे वीरों ने  मात्र   भूमि के लिए अपनी कुर्बानी दी और महारानी मणिमाला सहित १५०० खंगार ललनाओं ने अपने शील सतीत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अग्नि कुंड में प्राणों की आहुति दी जौहर की आग का वरण करते समय वीरांगना मणिमाला के तीर ने न केवल गद्दार हिम्मत सिंह की आँख फोड़ी वरन बाबर की पगड़ी को भी धूल धूसिरित किया ! चंदेरी के स्वाभिमान के आगे  बाबर ने स्वयं को पराजित महसूश किया और विजय का उत्सव भी नहीं मनाया ! प्रसिद्द इतिहासकार श्रवण कुमार त्रिपाठी के अनुसार १८ जनवरी १५२८ की  रात चंदेरी में जौहर की रात थी !जौहर की आग को १५ कोस की दूरी तक देखा गया ! जौहर की स्थिति का भान होते ही सुदूरवर्ती इलाकों की जनता ने वीरांगनाओं को श्रद्धा सुमन अर्पित किये यह परंपरा आज तक विद्यमान है उस महाचिता की शांत और अद्रश्य आग से चिर सुहाग बलिदान आत्मोत्सर्ग का नूतन संदेशा मिलता रहेगा चंदेरी के जौहर की इस घटना को आज भी लोक साहित्य में महसूस किया जा सकता  है गिलुआ ताल जहाँ  महारानी मणिमाला सहित वीर बसुन्धरा की अनेकानेक मनिमुक्ताओं ने आत्मोत्सर्ग किया था और बूढी चंदेरी के उन घरों से जहाँ से स्वतंत्रता के मतवाले खंगार वीर अपने घरों में ताला डालकर मेदिनी राय खंगार के नेतृत्व में राष्ट्रधर्म की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दी आज भी इस गाथा को दोहरा रहे हैं ! राष्ट्रधर्म और जुझारू संस्कृति की दिव्य आभा इतिहास के इस  स्वर्णिम घटनाक्रम  को आज भी प्रकाशमान किये हुए है .....
अशोक सूर्यवेदी