"गौरव और गद्दार "
नहीं झुके कभी रहे जूझते ,
जुझौतिखंड के वीर सपूत !
राष्ट्र धरम पर बलि चढ़े ,
जय भारत माँ के धीर सपूत !!
यवनों से अंग्रेजों तक जो ,
राष्ट्र धर्म हित जूझ गए !
धिक्कार तुम्हारे जीवन पर ,
तुम कैसे उनको भूल गए !!
सारा भारत ग्रसित हुआ जब ,
मुगलाधीन अंधियारे से !
जुझौतिखंड तब चमक रहा था ,
केशरिया उजियारे से !!
मेरे सिर का केशरिया ,
दुश्मन की आँख का तिनका था !
मगर खंगारों के सम्मुख ,
न उनमे साहस रण का था !!
धरती के सीने पर जिनका ,
तलवारों ने इतिहास लिखा !
विजय पराजय न लख जूझो ,
चले गए बस यही सिखा !!
वीरों के इतिहास में लेकिन ,
गद्दारों के जब चरण पड़े !
महाकाल की गाज गिरी ,
कई गद्दारी की भेंट चढ़े !!
वीरों का इतिहास सदा ही,
छल कपटों से मुक्त रहा !
पर गद्दारों का जीवन तो बस,
छल छंदों से युक्त रहा !!
आदिकाल से वर्तमान तक ,
जब जब काले बीज पड़े !
भारत भू के अमन चैन पर,
विपदाओं के झाड खड़े !!
त्रिलोक विजयी रावण हारा,
कुलघाती हुआ विभीषण !
काल यवन बन संकट आया ,
ज़रासंध ने दिया निमंत्रण !!
जूनागढ़ के वीर प्रतापी ,
रा"खंगार जी राजा थे !
इतिहास प्रसिद्द है महरानी ,
सती हुई थी रानक दे !!
बहिन पुत्र दो देसल बेसल ,
गद्दारी की गाज बने !
वीर धरा पर भार बने ,
धिक्कार बने मक्कार बने !!
सिद्धराज ने चोरी चुपके ,
रा"खंगार का नाश किया !
रानक दे फिर सती हुई औ",
वीर प्रष्ट का अंत हुआ !!
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"अशोक सूर्यवेदी"