सोमवार, 21 नवंबर 2011

चंदेरी का जौहर और बाबर का झूंठ

जौहर का शिला लेख 



भारत का इतिहास स्याही से नहीं बल्कि वीरों के शोणित और तलवारों से लिखा गया है . इतिहास इस बात का साक्षी है की हमने कभी भी आक्रान्ताओं के सामने समर्पण नहीं किया . स्वर्ण सुंदरी के लोभी विदेशी जब जब भारत की और बढे हमारे वीरों ने उनका स्वागत लपलपाती तलवारों से किया . दुर्भाग्यवश  यदि आक्रान्ताओं ने युद्ध  क्षेत्र में तलवारों को जीत लिया और भारती के वीर हर हर महादेव उद्घोष करते हुए शहीद हो गए तो राजमहिषी और वीरांगनाओं ने भी कभी दुश्मन के साथ समझौता नहीं क्या अपितु जय जय हर के नारों के साथ जौहर की आग का वरन  कर अपने कुल और देश के स्वाभिमान की रक्षा की !
       
             मध्य युगीन इतिहास में चंदेरी का जौहर अब तक के इतिहास का सबसे विशाल जौहर माना  जाता है !बाबर ने खानवा के युद्ध  में राणा  सांगा को परास्त कर हिन्दुओं के शक्ति केंद्र  चंदेरी की और अपने लस्कर समेत कूच किया तो खानवा में बाबर की ताकत का सामना कर चुके मेदनी राय खंगार और उनके वीरों ने झुकना स्वीकार नहीं किया बाबर के लाख प्रलोभनों को नकार कर अपने अंजाम से वाकिफ मेदनी राय खंगार ने बाबर की रन हुंकार को सहर्ष स्वीकार किया !

चंदेरी दुर्ग 
               ३२ मील की लम्बाई चौडाई में आबाद चंदेरी नगर बेतवा और उर नदी के घेर में तीन और से घिरा हुआ था और चौथी और विन्ध्य की उपत्यका प्रहरी रूप में प्रस्तुत थी ! बाबर ने जनवरी १५२८ में चंदेरी पर धावा बोला तो स्वाभिमान से पूरित खंगार सेना ने भरकश प्रतिरोध करते हुए वीरगति पायी ! बाबर ने अपनी आत्मकथा में इस युद्ध का वर्णन  करते हुए लिखा है कि "उसने चंदेरी को मात्र तीन घडी में ही जीत लिया था " अपने आप में श्लाघापूर्ण  है और विजेता के बडबोलेपन का उदाहरण मात्र है ! बाबर के अपने इस कथन की  धज्जियां उसके द्वारा शेख गुरेन और अरायाश खां पठान  को बारम्बार संधि के लिए चंदेरी भेजने कि घटना से ही उड़ जाती हैं ! हकीकत तो यह है कि चंदेरी कि जटिल भौगोलिक रचना, मेदिनी राय खंगार का सैन्य बल, और खानवा के युद्ध में उसका शौर्य देखकर बाबर हिम्मत जबाब दे रही थी ! लेकिन भाग्य के धनी बाबर की किस्मत से गद्दार हिम्मत सिंह ने घर कि कुरैया बनकर वीर बसुन्धरा कि आँख फोड़ी , गद्दारों का बल पाकर  ही बाबर ने चंदेरी को कूच किया ! वीरभूमि का यह दुर्भाग्य रहा की मेदिनी राय खंगार को पुत्रवत स्नेह देने वाले महाराणा  सांगा को चंदेरी युद्ध में पहुचने से पहले ही षड़यंत्र का शिकार बना लिया गया और मेदिनी राय खंगार युद्ध क्षेत्र में अकेला पड़ गया ! मेदिनी राय खंगार के नेतृत्व में स्वतंत्रता के शोलो को दिल में सहेजे वीरों ने  मात्र   भूमि के लिए अपनी कुर्बानी दी और महारानी मणिमाला सहित १५०० खंगार ललनाओं ने अपने शील सतीत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अग्नि कुंड में प्राणों की आहुति दी जौहर की आग का वरण करते समय वीरांगना मणिमाला के तीर ने न केवल गद्दार हिम्मत सिंह की आँख फोड़ी वरन बाबर की पगड़ी को भी धूल धूसिरित किया ! चंदेरी के स्वाभिमान के आगे  बाबर ने स्वयं को पराजित महसूश किया और विजय का उत्सव भी नहीं मनाया ! प्रसिद्द इतिहासकार श्रवण कुमार त्रिपाठी के अनुसार १८ जनवरी १५२८ की  रात चंदेरी में जौहर की रात थी !जौहर की आग को १५ कोस की दूरी तक देखा गया ! जौहर की स्थिति का भान होते ही सुदूरवर्ती इलाकों की जनता ने वीरांगनाओं को श्रद्धा सुमन अर्पित किये यह परंपरा आज तक विद्यमान है उस महाचिता की शांत और अद्रश्य आग से चिर सुहाग बलिदान आत्मोत्सर्ग का नूतन संदेशा मिलता रहेगा चंदेरी के जौहर की इस घटना को आज भी लोक साहित्य में महसूस किया जा सकता  है गिलुआ ताल जहाँ  महारानी मणिमाला सहित वीर बसुन्धरा की अनेकानेक मनिमुक्ताओं ने आत्मोत्सर्ग किया था और बूढी चंदेरी के उन घरों से जहाँ से स्वतंत्रता के मतवाले खंगार वीर अपने घरों में ताला डालकर मेदिनी राय खंगार के नेतृत्व में राष्ट्रधर्म की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दी आज भी इस गाथा को दोहरा रहे हैं ! राष्ट्रधर्म और जुझारू संस्कृति की दिव्य आभा इतिहास के इस  स्वर्णिम घटनाक्रम  को आज भी प्रकाशमान किये हुए है .....
अशोक सूर्यवेदी