शनिवार, 1 सितंबर 2012

गौरव और गद्दार



"गौरव और गद्दार " 

नहीं झुके कभी रहे जूझते , 
जुझौतिखंड के वीर सपूत ! 
राष्ट्र धरम पर बलि चढ़े , 
जय भारत माँ के धीर सपूत !! 
यवनों से अंग्रेजों तक जो , 
राष्ट्र धर्म हित जूझ गए ! 
धिक्कार तुम्हारे जीवन पर , 
तुम कैसे उनको भूल गए !! 
सारा भारत ग्रसित हुआ जब , 
मुगलाधीन अंधियारे से ! 
जुझौतिखंड तब चमक रहा था , 
केशरिया उजियारे से !! 
मेरे सिर का केशरिया , 
दुश्मन की आँख का तिनका था ! 
मगर खंगारों के सम्मुख , 
न उनमे साहस रण का था !! 
धरती के सीने पर जिनका , 
तलवारों ने इतिहास लिखा ! 
विजय पराजय न लख जूझो , 
चले गए बस यही सिखा !! 
वीरों के इतिहास में लेकिन , 
गद्दारों के जब चरण पड़े ! 
महाकाल की गाज गिरी , 
कई गद्दारी की भेंट चढ़े !! 
वीरों का इतिहास सदा ही, 
छल कपटों से मुक्त रहा ! 
पर गद्दारों का जीवन तो बस, 
छल छंदों से युक्त रहा !! 
आदिकाल से वर्तमान तक , 
जब जब काले बीज पड़े ! 
भारत भू के अमन चैन पर, 
विपदाओं के झाड खड़े !! 
त्रिलोक विजयी रावण हारा, 
कुलघाती हुआ विभीषण ! 
काल यवन बन संकट आया , 
ज़रासंध ने दिया निमंत्रण !! 
जूनागढ़ के वीर प्रतापी , 
रा"खंगार जी राजा थे ! 
इतिहास प्रसिद्द है महरानी , 
सती हुई थी रानक दे !! 
बहिन पुत्र दो देसल बेसल , 
गद्दारी की गाज बने ! 
वीर धरा पर भार बने , 
धिक्कार बने मक्कार बने !! 
सिद्धराज ने चोरी चुपके , 
रा"खंगार का नाश किया ! 
रानक दे फिर सती हुई औ", 
वीर प्रष्ट का अंत हुआ !! 

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"अशोक सूर्यवेदी"

मंगलाचरण

" मंगलाचरण "
कर आचमन माँ वेत्रवती से , 
गणपति को शीश झुकता हूँ !! 
फिर माँ सरस्वती मैं तेरे दर पर, 
याचक बनकर आता हूँ !! 
माँ से शब्द सम्पदा ले अब , 
इतिहासों के साक्ष्य जुटाता हूँ !! 
फिर गिरिवासन तेरे दर पर, 
श्रद्धा से शीश झुकता हूँ !! 
कुलदेवी मात गजानन ", 
साक्षी मैं यह तुमसे रखता आस !! 
साथ कलम का देकर माँ अब , 
लिखवा दो तुम इतिहास !! 
वीर की गाथा है यह जिसने , 
जूझ के जीना मरना सीखा !! 
तो सच को सच गाने की खातिर , 
मैंने भी कब डरना सीखा !! 
जो म्रत्यु भय से मुक्त कराती , 
मातु कालिके नमस्कार ! ! 
अब निर्भय होकर गाता हूँ , 
मैं गौरव गाथा जय खंगार !!

"अशोक सूर्यवेदी "

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

गढ़ कुंडार

"गढ़ कुंडार" 

किसका था ये राज्य यहाँ , 
ये किसका वीरान महल खड़ा ? 
किसने दे दी जान सत्य को , 
किसका साक्षी खंभ पड़ा ? 
कौन हुआ है वाली धरम पर , 
किसने ये संग्राम किया ? 
किसने दे दी घात महल को, 
किसने जीवन दान किया ? 
चीख पड़े कुछ पन्ने मुझ पर , 
इतिहासी करुण कहानी के ! 
कल तक थे तुम कवि कहाँ , 
दिन बीते तीव्र जवानी के ? 
खंग अंग जो धारण करते , 
राजधानी भूप खंगारों की ! 
क्षात्र धर्म और देशप्रेम ही , 
ध्येय रही अंगारों की ! 
सन्मुख न कोई रहा खड़ा , 
एक योद्धा ऐसा खेत खंगार ! 
मलिखा जिसने हाथो मारा, 
आल्हा भगा छोड़ संहार !! 
सिंहों से बिन शष्त्र वो लड़ता , 
बज्र देह वाला था खेत ! 
खड्ग धार जब रन में डटता, 
वैरी नवते सैन्य समेत !! 
हार गयी जिसके बल से , 
चंदेलों की कीर्ति पताका ! 
मजबूर हुआ परमाल जिसे , 
करने को नीचा निज माथा !! 
दिल्ली पति चौहान जिसे , 
वीरो में वीर समझते थे ! 
सामंत था अति क्रोध बंत , 
बजरंग जिसे सब कहते थे !! 
था अधिपति वो भूप यहाँ का ,
उसकी कृति ये गढ़ कुंडार ! 
राजपूतो में प्रथम सिंह ,
जय महाराजा खेत खंगार !! 

" अशोक सूर्यवेदी "