शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

गढ़ कुंडार

"गढ़ कुंडार" 

किसका था ये राज्य यहाँ , 
ये किसका वीरान महल खड़ा ? 
किसने दे दी जान सत्य को , 
किसका साक्षी खंभ पड़ा ? 
कौन हुआ है वाली धरम पर , 
किसने ये संग्राम किया ? 
किसने दे दी घात महल को, 
किसने जीवन दान किया ? 
चीख पड़े कुछ पन्ने मुझ पर , 
इतिहासी करुण कहानी के ! 
कल तक थे तुम कवि कहाँ , 
दिन बीते तीव्र जवानी के ? 
खंग अंग जो धारण करते , 
राजधानी भूप खंगारों की ! 
क्षात्र धर्म और देशप्रेम ही , 
ध्येय रही अंगारों की ! 
सन्मुख न कोई रहा खड़ा , 
एक योद्धा ऐसा खेत खंगार ! 
मलिखा जिसने हाथो मारा, 
आल्हा भगा छोड़ संहार !! 
सिंहों से बिन शष्त्र वो लड़ता , 
बज्र देह वाला था खेत ! 
खड्ग धार जब रन में डटता, 
वैरी नवते सैन्य समेत !! 
हार गयी जिसके बल से , 
चंदेलों की कीर्ति पताका ! 
मजबूर हुआ परमाल जिसे , 
करने को नीचा निज माथा !! 
दिल्ली पति चौहान जिसे , 
वीरो में वीर समझते थे ! 
सामंत था अति क्रोध बंत , 
बजरंग जिसे सब कहते थे !! 
था अधिपति वो भूप यहाँ का ,
उसकी कृति ये गढ़ कुंडार ! 
राजपूतो में प्रथम सिंह ,
जय महाराजा खेत खंगार !! 

" अशोक सूर्यवेदी "