"गढ़ कुंडार"
किसका था ये राज्य यहाँ ,
ये किसका वीरान महल खड़ा ?
किसने दे दी जान सत्य को ,
किसका साक्षी खंभ पड़ा ?
कौन हुआ है वाली धरम पर ,
किसने ये संग्राम किया ?
किसने दे दी घात महल को,
किसने जीवन दान किया ?
चीख पड़े कुछ पन्ने मुझ पर ,
इतिहासी करुण कहानी के !
कल तक थे तुम कवि कहाँ ,
दिन बीते तीव्र जवानी के ?
खंग अंग जो धारण करते ,
राजधानी भूप खंगारों की !
क्षात्र धर्म और देशप्रेम ही ,
ध्येय रही अंगारों की !
सन्मुख न कोई रहा खड़ा ,
एक योद्धा ऐसा खेत खंगार !
मलिखा जिसने हाथो मारा,
आल्हा भगा छोड़ संहार !!
सिंहों से बिन शष्त्र वो लड़ता ,
बज्र देह वाला था खेत !
खड्ग धार जब रन में डटता,
वैरी नवते सैन्य समेत !!
हार गयी जिसके बल से ,
चंदेलों की कीर्ति पताका !
मजबूर हुआ परमाल जिसे ,
करने को नीचा निज माथा !!
दिल्ली पति चौहान जिसे ,
वीरो में वीर समझते थे !
सामंत था अति क्रोध बंत ,
बजरंग जिसे सब कहते थे !!
था अधिपति वो भूप यहाँ का ,
उसकी कृति ये गढ़ कुंडार !
राजपूतो में प्रथम सिंह ,
जय महाराजा खेत खंगार !!
" अशोक सूर्यवेदी "
