शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

जिंदगी जैसे नार छिनार


जिंदगी जैसे नार छिनार ,
मिथ्या साँसों का व्यव्हार !
सकल व्यापार है बेमानी ,
मनुज मन ढोता है लाचार.....!!

सोमवार, 23 जून 2014

अशोक सूर्यवेदी

शब्द शब्द मेरा है जी अंगारों के अंश में ,
मैं पला बढ़ा हुआ हूँ खंगारों के वंश में !!

गुरुवार, 19 जून 2014

उम्मीदों का गाँव हैं पापा


बरगद वाली छाँव हैं पापा ,
अंगद वाला पाँव हैं पापा !
जहाँ हसरतें पूरी होतीं ,
उम्मीदों का गाँव हैं पापा ....!