कभी महल से निकल झोपड़ी के, दुःख भी बांटा करो अगस्त !
हैं कितने शूल नुकीले पथ में, इनको भी छांटा करो अगस्त !!
हमने जीवन होम किये थे, दर्श तुम्हारे पाने में !
आना कानी तुमने भी की, थी देश हमारे आने में!!
अब आये हो तो हो, दिल्ली में ही पूर्ण व्यस्त !
कभी महल से निकल झोपड़ी के, दुःख भी बांटा करो अगस्त !
यहाँ न पीने को पानी ,तुम पीते पानी बोतल में ?
यहाँ भुखमरी का आलम, तुम पञ्च सितारा होटल में ?
तुम बने नगीना छल्ले, के हो उनकी उंगली में पैबस्त !
कभी महल से निकल झोपड़ी के, दुःख भी बांटा करो अगस्त !
स्वतंत्रता दिवस पर इन्ही भावनाओं शुभ कामनाओं सहित
एड . अशोक सूर्यवेदी