सोमवार, 15 अगस्त 2011

कभी महल से निकल झोपड़ी के, दुःख भी बांटा करो अगस्त !


कभी महल से निकल झोपड़ी के, दुःख भी बांटा करो अगस्त !
हैं कितने शूल नुकीले पथ में, इनको भी छांटा करो अगस्त !!

हमने जीवन होम  किये थे, दर्श तुम्हारे  पाने में !
आना कानी तुमने भी की, थी  देश हमारे आने में!!
अब आये हो तो हो, दिल्ली में ही  पूर्ण  व्यस्त !
कभी  महल से निकल झोपड़ी के, दुःख भी बांटा करो अगस्त !

यहाँ न पीने को पानी ,तुम पीते पानी बोतल में ?
यहाँ भुखमरी का आलम, तुम पञ्च सितारा होटल में ?
तुम बने नगीना छल्ले, के हो उनकी उंगली में पैबस्त !
कभी  महल से निकल झोपड़ी के, दुःख भी बांटा करो अगस्त !


स्वतंत्रता दिवस पर इन्ही भावनाओं शुभ कामनाओं सहित 
एड . अशोक सूर्यवेदी 


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