शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

GARH KUNDAR VISION

                              गढ़ कुंडार

गढ़ कुंडार का किला मऊरानीपुर से ५० कि०मी० की दूरी पर बना हुआ है !यह ११ वीं शताब्दी में जुझौती प्रदेश की राजधानी था ! गढ़ कुंडार उस समय उत्तर भारत का  एक बड़ा शहर था ! सन ११८२ ई० में महाराज खेत सिंह खंगार ने चंदेलों के समय से आबाद इस सैनिक मुख्यालय के स्थान पर  अजेय दुर्गम दुर्ग  का निर्माण करवाया था ! घने जंगलों और  पहाड़ों के बीच बना यह किला दूर से तो दिखाई देता है किन्तु जैसे जैसे इसके नजदीक पहुँचते हैं  यह दिखाई देना बंद हो जाता है !आक्रमण की द्रष्टि से यह पूर्ण सुरक्षित है अतः इसे दुर्गुम दुर्ग कहा जाता है !यह किला उत्तर भारत की सबसे प्राचीन ईमारत है ! यह पहाड़ों की ऐसी ऊंचाई पर बना है कि तोपों के गोले इसे नहीं तोड़ सकते थे लेकिन इस किले से बहुत दूर तक दुश्मन को देखकर उसे आसानी से मारा जा सकता था !

हस्तिपथ द्वारा इस किले तक आसानी से पहुंचा जा सकता है सिंह द्वार के बाहर दो चबूतरे हैं जिन्हें दीवान चबूतरा कहते है ! सिंहद्वार की ऊंचाई लगभग २० फुट है तथा लम्बाई ८० फुट है !सिंहद्वार  से लगा हुआ परकोटा राजमहल  को चारों तरफ से घेरे है जिसकी मोटाई लगभग ६ फुट है ! सिंह द्वार को पार करने पर सिंहपौर है इसके बाद तोप खाना है जहाँ राजाओ के समय तोपें रखी जाती थीं !                                       



राज महल के बाहर एक घुडसाल है जहाँ राजा के घोड़े बांधे जाते थे !इस घुडसाल के ११ दरवाजे हैं तथा यह १८ फु० चौड़ी और १०० फ़ु० लम्बी है ! इसके सामने एक चक्की लगी है जिससे चूना पीसने का काम होता था ! इसी घुडसाल के सामने बना हुआ है भव्य राजमहल जिसके आठ  खंड है ! इसके तीन खंड अन्दर जमीन में हैं तथा चार खंड ऊपर हैं !राजमहल का प्रवेश द्वार पार करने के बाद करने के बाद राजमहल के कक्ष और सीढियाँ है तथा आगे जाने पर भव्य आँगन जिसके चारों तरफ कमरे और दालान बनी हुई हैं ! महल का आंतरिक भाग काफी बड़ा और वर्गाकार है!महल में राजा रानी का कक्ष , राजकुमारों के कक्ष , राजा का दीवाने आम और बंदी गृह भी बने हुए है ! महल के आँगन में  हनुमान जी का एक मंदिर था जो अब टूट गया है ! और हनुमान जी गिद्धवाहिनी देवी जी के मंदिर में चले गए हैं ! आँगन में ही एक विशाल वेदी बनी हुयी है जहाँ राजा महापूजा करता था ! राजकुमारी केशर दे का जौहर स्तम्भ भी आँगन में रखा हुआ है ! महल के नीचे के तल से एक सुरंग महल के बाहर कुंए तक जाती है इस कुंए को जौहर कुआं  भी कहते हैं ! क्योंकि जब खंगार राजा और मोहम्मद तुगलक के बीच लड़ाई हुयी और कुंडार के  राजा युद्ध में मारे गए तब राजमहल की रानियों और राजकुमारी केशर दे ने इसी कुंए में आग जलाकर अपने प्राणों की आहुति दी थी !
                                                                             राजमहल के बाद गढ़ कुंडार में गिद्ध वाहिनी देवी का मंदिर , सिंदूर सागर ताल, गजानन माता मंदिर, मुडिया महल , खजुआ बैठक सिया की रावर भी दर्शनीय स्थल हैं ! गढ़ कुंडार में खंगार राजवंश के संस्थापक महाराजा खेत सिंह खंगार की जयंती २७ दिसम्बर को प्रति वर्ष मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे विविध सांस्कृतिक  कार्यक्रम होते हैं और बड़ी संख्या में देश के कोने कोने से लोग महाराज खेत सिंह खंगार की जयंती मानाने यहाँ आते हैं !
                                                                      द्वारा :-
                                                             अशोक सूर्यवेदी
                                                          मो. ९४५००४०२२७
                                                नि. मिनी विला, शिवगंज मऊरानीपुर
                                                                 झाँसी

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

SURYAVEDI

नव सृजन
                                       अशोक सूर्यवेदी
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नव सृजन के गीत गाने ,  गुनगुनाने आ गया हूँ !
प्रस्तर कठोर काट के ,  जलधार लाने आ गया हूँ !
सदियाँ सदा खामोश थी ,
मैं रह  नहीं पाटा  मगर !
इक बोझ बनती जिन्दगी ,
जो कह नहीं पाता अगर !
नक्कार खाने में सही , तूती बजाने  आ गया हूँ !
नव सृजन के गीत गाने , गुनगुनाने आ गया हूँ !
चाटुकारी          चारणों ने ,
चाँद को ढक कर रखा था !
बैशाखियों ने जुगनुओं को ,
 सूर्य सा कर के रखा था !
जिस पूर्णिमा की रात को ,
काला बना झुठला दिया !
उस अँधेरी रात को , पूनम बनाने आ गया हूँ !
नव सृजन के गीत गाने , गुनगुनाने आ गया हूँ !
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द्वारा :-
अशोक सूर्यवेदी
संपर्क:-  मिनी विला
शिवगंज मऊरानीपुर झाँसी उत्तर प्रदेश
मो:- 9450040227

रविवार, 13 दिसंबर 2009

GARH KUNDAR

                                                
                                  जुझारू संस्कृति का जनक गढ़ कुण्डार
                                                                                                              अशोक सूर्यवेदी
नक्षत्रों में सूर्य सी आभा लिए जुझौती (आधुनिक बुंदेलखंड ) का प्राचीनतम और पवित्रतम दुर्ग, गढ़ कुंडार एक ऐतिहासिक महत्त्व का  दुर्ग  ही नही बल्कि राष्ट्र धर्म और जुझारू संस्कृति का जनक भी है!अपने एक सह्त्राब्दी के जीवन काल  में इस गढ़ ने अनेकानेक राजनैतिक ,सांस्कृतिक और धार्मिक  उतार चढाव देखे हैं !चंदेल शासक  परमर्दिदेव के शासन  काल  में गढ़ कुंडार का अस्तित्व जैजाक भुक्ति के एक प्रमुख सैनिक मुख्यालय के रूप में था ! इस सैनिक मुख्यालय में चंदेल शासन  के नाम पर प्रशासक सिया परमार और सेनापति खूब सिंह खंगार नियुक्त थे !
इसी समय राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते महोबा के चंदेल और दिल्ली के चौहानों के बीच ठन गई! ११८२ ई० के इस चंदेल चौहान संग्राम में चंदेल सेना की कमान जहाँ प्रसिद्द बनाफर वीर आल्हा उदल ने सम्हाली तो दिल्ली पति प्रथ्वीराज चौहान अपने महापराक्रमी सामंतों और परम मित्र नर नाहर खेत सिंह खंगार सहित समरांगण में मौजूद थे ! बैरागढ़(उरई ) के मैदान में हुए इस घमासान युद्ध में प्रसिद्द बनाफर वीर उदल वीरगति को प्राप्त हुआ चंदेलों की पराजय हुई परमाल ने मैंदान छोड़ कर कालिंजर के किले में शरण ली किंतु भाग्य के धनी प्रथ्वी राज ने विजयोंन्माद में कालिंजर को भी घेर लिया अंततः समझौते की शर्तों के तहत परमाल को कलिन्जराधिपति बने रहने दिया गया ! महोबा जीत लिया गया ! इस युद्ध में चंदेलों की और से प्रशासक सिया परमार भी वीरगति को प्राप्त हुआ युद्ध की समाप्ति पर सेनापति खूब सिंह खंगार अपनी बची खुची सैन्य शक्ति समेत कुंडार लौट आया और कुंडार का  प्रशासक बन गया ! इसी युद्ध से आल्हा को भी संसार से विरक्ति हो गई और वह सब कुछ छोड़ कर गुरु गोरख नाथ के साथ चला गया !
                                                                   वहीं दूसरी और प्रथ्वी राज ने अपनी विजय का श्रेय सोरठाधिपति रा कवाट के पराक्रमी पुत्र खेत सिंह खंगार को दिया और उसकी मातहती में विजित प्रदेश का भूभाग जिसकी सीमा चम्बल से धसान नदी तक थी का अधिपत्य  देकर दिल्ली लौट गया ! महोबा नगर का प्रधान चौहान का  महासामंत पज्जुन राय नियुक्त हुआ और क्षेत्रधिपति नर नाहर खेत सिंह खंगार !
                                                                  गढ़ कुंडार में खूब सिंह खंगार के अधिपत्य को जेजाकभुक्ति में  खंगार समीकरण बन जाने से मान्यता प्राप्त हो गई और उसे गढ़ कुंडार का आंचलिक शासक  बने रहने दिया गया ! किंतु इसी राजनैतिक गहमागहमी के बीच गोंडों ने शक्ति संकलित कर अपने पुराने गढ़ , गढ़ कुंडार हमला बोल दिया  चंदेल -चौहान युद्ध की बिभीसिका में झुलसा खूब सिंह खंगार इस हमले के लिए तैयार नही था किंतु युद्ध हुआ खूब सिंह मारा गया और एक लंबे समय बाद गढ़ कुंडार पुनः गोंडों के अधिकार में आ गया !
                                                                   गोंड अभी अपनी उपलब्धि का जश्न मना भी न पाए थे कि खेत सिंह खंगार ने गोंडों के विरुद्ध अभियान छेड़ कर उन्हें सदा सर्वदा के लिए कुचल कर गढ़ कुंडार पर अधिकार कर लिया कुंडार का यह सैनिक मुख्यालय खेत सिंह को सामरिक द्रष्टिकोण बहुत अधिक जँचा अतः उन्होंने इस जगह भव्य भवन बनाने का निर्णय लिया और यही भवन गढ़ कुंडार नाम से इतिहास में दर्ज महाराज खेत सिंह कि अनुपम रचना है खंगार शासित प्रदेश कि राजधानी का गौरव इसी महामहल को प्राप्त हुआ !
                                                                    सन ११९२ ई. तराइन युद्ध में प्रथ्विराज कि दुर्भाग्यपूर्ण पराजय से जेजाक भुक्ति का  खंगार राज्य अकेला पड़ गया किन्तु यही वह समय था जब खंगार राज्य को अपनी रीति-नीति स्पष्ट करनी थी या तो यवन सल्तनत की या अनवरत संघर्ष का ऐलान ! ऐसे में महाराज खंगार ने इस माटी की अस्मिता को पहिचान कर अनवरत संघर्ष का विगुल फूंक स्वपोषित राज्य को स्वतंत्र हिन्दू खंगार राज्य घोषित कर दिया !
                                                                     चौतरफा दुश्मनों से घिरे और यवन आक्रमणों के खतरे से निपटने के लिए इस महामहल से  जुझारू संस्कृति का  जन्म हुआ और कुंडार की वीर धरा पर राष्ट्र धर्म का पौधा रोपा गया जिसने वट वृक्ष का रूप लेकर इस प्रदेश को हमेशा मुसलमान आक्रान्ताओं की आग धार से सुरक्षित रखा ! महाराज खेत सिंह खंगार प्रणीत जुझारू संस्कारों की जननी यह  धरा  जुझारू संस्कृति के कारण जुझौती प्रदेश के आदरणीय नाम से संबोधित की गयी ! राष्ट्र-धर्म और  जुझारू संस्कृति के संस्कार  इस वीर प्रसू में आज भी विद्यमान हैं और इन्ही संस्कारों के कारण गढ़ कुंडार ने कभी भी विधर्मी आक्रान्ताओं को जुझौती के पवित्र आँगन में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी और समर में आक्रान्ताओं की सेनाएं कोसों खदेड़ी गयी !
                                                                    खेत सिंह खंगार के पश्चात् उसके बाहुबली प्रपौत्र  खूब सिंह ने गढ़ कुंडार की कीर्ति पताका को ऊँचा किया ! इसके शासन काल में तत्कालीन कड़ा के गवर्नर अलाउद्दीन खिलजी ने  दक्षिण कि विजय करके जब गढ़ कुंडार की और अपनी बक्रद्रष्टि की तो खूब सिंह खंगार के अप्रितिम शौर्य के आगे न केवल उसे मैदान छोड़ना पड़ा वरन दक्षिण की उस अकूत धन सम्पदा से भी हाँथ धोना पड़ा जो वह वहां से लूटकर लाया था ! लूट की वह सम्पदा गढ़ कुंडार  के राजकोष की भेंट चढ़ गई !
                                                                    खूब सिंह के पश्चात् उसका पुत्र मानसिंह सिंहासनारुढ़ हुआ इसके समय में शरणागत वंश के कुछ असंतुष्ट  सरदारों ने जुझौती की अस्मिता का सौदा तुगलक के दिल्ली दरवार में कर डाला गढ़ कुंडार अपने ही सामंतों की गद्दारी से छला गया ! किन्तु जुझारू संस्कृति की पालक पोषक जुझौती की सेनाओं और जनता ने स्त्री-पुरुष ,बच्चों और बूढों सहित  हर मोर्चे पर तुगलक की सेना का अपनी तलवारों से स्वागत किया !किन्तु,खड्ग के धनी खंगारों का भाग्य रूपी सूर्य अस्ताचल को चल दिया था!कुंडार नगर तबाह हो गया किन्तु गढ़ कुंडार के इस महामहल ने झुकना स्वीकार नहीं किया! महाराज मानसिंह खंगार युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए किन्तु समर रुका नहीं छत्र धारण कर उसके पुत्र बरदाई सिंह ने बची खुची सैन्य शक्ति के साथ साका का ऐलान कर जीवन का मोह त्याग   पूरे वेग से दुश्मन पर आक्रमण किया राजनैतिक पराजय सुनिश्चित जान गढ़ कुंडार के महामहल में जौहर की आग धधक उठी राजकुमारी केशर दे सहित सभी खंगार वीरांगनाओं और ललनाओं ने राष्ट्र धर्म के परिपालन में जौहर की यज्ञाग्नि में अपनी देह की आहुति देकर गढ़ कुंडार के सदा ही उन्नत भाल को झुकने नहीं दिया !
                                                                         दुश्मन तुगलक के आदेश से पूरा नगर ध्वस्त कर दिया गया सिर्फ यह महामहल शेष रहा जो बलिदान की इस पराकाष्ठा को याद कर कभी गौरवान्वित होता है तो कभी स्वतंत्र भारत में अपनी उपेक्षा पर आंसू बहता है!गढ़ कुंडार और उसके प्रिय खंगार वीरों का सम्मान और सत्य पश्चात्वर्ती शासकों की इर्ष्या की भेंट चढ़ा और किवदंतियो  का पुलिंदा बनता रहा जहाँ न केवल पीढियो से इसके शौर्य को छुपाया गया बल्कि इतिहास  के स्वर्णिम पन्नों को फाड़ने में भी कोई कोताही नहीं बरती गई ! स्वतंत्र भारत की सरकारों के सामने गढ़ कुंडार एक मात्र प्रश्न लिए खड़ा है ,-क्या यवनों से अंग्रेजो तक विधर्मियों के दांत खट्टे करने वाला यह गढ़ और इसके पुजारी जुझारू संस्कारों और राष्ट्र धर्म से प्रेम करने की सजा पा रहे हैं ?