मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

SURYAVEDI

नव सृजन
                                       अशोक सूर्यवेदी
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नव सृजन के गीत गाने ,  गुनगुनाने आ गया हूँ !
प्रस्तर कठोर काट के ,  जलधार लाने आ गया हूँ !
सदियाँ सदा खामोश थी ,
मैं रह  नहीं पाटा  मगर !
इक बोझ बनती जिन्दगी ,
जो कह नहीं पाता अगर !
नक्कार खाने में सही , तूती बजाने  आ गया हूँ !
नव सृजन के गीत गाने , गुनगुनाने आ गया हूँ !
चाटुकारी          चारणों ने ,
चाँद को ढक कर रखा था !
बैशाखियों ने जुगनुओं को ,
 सूर्य सा कर के रखा था !
जिस पूर्णिमा की रात को ,
काला बना झुठला दिया !
उस अँधेरी रात को , पूनम बनाने आ गया हूँ !
नव सृजन के गीत गाने , गुनगुनाने आ गया हूँ !
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द्वारा :-
अशोक सूर्यवेदी
संपर्क:-  मिनी विला
शिवगंज मऊरानीपुर झाँसी उत्तर प्रदेश
मो:- 9450040227

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